कहाँ मिलना मिलाना चाहते हैं
तआरुफ़ गायेबाना चाहते हैं
कहो सूरज से जाकर डूब जाये
ये जुगनू जगमगाना चाहते हैं
उजाला दुश्मनों के घर भी पहुंचे
दिया ऐसा जलाना चाहते हैं
मुझे इक और दिल दे दे खुदाया
वो मेरा दिल दुखाना चाहते हैं
गरीबों की तमन्नायें न पूछो
ये बस दो वक़्त खाना चाहते हैं
बहुत अब होचुकी बे एअतेनाइ
तेरी महफ़िल से जाना चाहते हैं
मेरी हिम्मत नहीं कि झूट बोलूं
क़सम अपनी खिलाने चाहते हैं
बस उसके बाद चाहे दम ही निकले
गले तुमको लगाना चाहते हैं
सरे महफ़िल वो आये आज बे पर्दा
गज़ब सब पर वो ढाना चाहते हैं
असर कबिरा का हम पे होगया है
हम अपना घर जलाना चाहते हैं
असद निज़ामी |